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प्रिंटिंग प्रेस | ऑफसेट प्रिंटिंग | रिलीफ प्रिंटिंग | इंटेगलियो प्रिंटिंग | छापाकला (Graphics Art)

विश्व में छापाकला की खोज 6 नवंबर 1771 ई में एलायंस सेन फेल्डर ने सर्वप्रथम चित्रकला ग्राफिक में छापा कला की खोज की जिसे ऑफसेट प्रिंटिंग कहा जाता है। उभरी सतह से मुद्रण (रिलीफ प्रिंटिंग) - ब्लॉक प्रिंटिंग(220 ई. पु.), - वुडकट , लिनोकट, खोदी गई सतह से मुद्रण (इंटेगलियो प्रिंटिंग) - एचिंग/अमलांकन(1515), एक्वान्टिट,ड्राई पॉइंट , मेजॉटिन्ट, विस्कॉसिटी, समतल सतह से मुद्रण (प्लेनोग्राफी) - लिथोग्राफी,1796 ई. /सरफेस, स्टेन्सिल

  • Scarlett Hill👋
    Scarlett Hill👋
    March 03, 2025
प्रागेतिहासिक काल मे मानव शैलाश्रयों एव गुफाओ में रहता था तथा अभिव्यक्ति के लिए ध्वनि संकेतो का सहारा लेता था,मनुष्य ने अपनी भावनाओं व विचारों को व्यक्त करने के लिए सर्वप्रथम भाषा का ही प्रयोग किया चाहे वह किसी भी रूप में हो । 
उस मानव ने अपनी भावनाओं व एव विचारों को सुरक्षित रखने एव भावी पीढ़ी को सम्प्रेषित करने के लिए चित्रो एव चिन्हों का प्रयोग आरंभ किया और इन चिन्हों व चित्रों से लिपी का विकास हुआ ।
जिससे पत्रों, पुस्तको आदि के जरिये अपने विचारों एव ज्ञान को सुरक्षित रखा जाने लगा जिनकी पहुँच कुछ लोगों तक थी।
इसी को सभी लोगों के पास पहुचाने के लिए मुद्रण का आविष्कार किया गया।

प्रागेतिहासिक काल से प्रारंभ करें तो तत्कालीन गुफा चित्रो में भी हमे छापाकला का एक प्राथमिक स्वरूप दिखाई देता है।
जो हाथ एवं पैरों के छाप के निशान हैं। जो प्राय लाल, काले तथा पीले रंगों से गुफा की नम दीवारों पर अंकित किये गए हैं।
ये चित्र दो प्रकार के है निगेटिव तथा पॉजिटिव
निगेटिव प्रकार में हाथ को दीवार पर रखकर मुँह अथवा हड्डी की नली से रंग फूंका गया, जिससे हाथ के आस पास की जगह रँगीन हो गई और हाथ की छाप का निगेटिव बन गया।
दूसरे प्रकार के चित्रों में हाथ को रंग में डुबोकर उसकी छाप लगाने से हाथ के निशान बन गये ।
लकड़ी के ठप्पों या ब्लॉक द्वारा छपाई के कुछ शुरूआती प्रमाण वर्तमान चीन से भी मिलते हैं। जिसका काल लगभग 220 ईसा पूर्व माना जाता है। 
8 वी शदी में उभारदार सतह द्वारा मुद्रण सर्वाधिक विकास हुआ। 868 में छापी गई पांडुलिपि हरिक सूत्र इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
प्रिंटिंग प्रेस की खोज सबसे पहले जर्मनी के जोहान गुटेनबर्ग इन्होने 1440 में मूवेबल टाइप की भी रचना की। 
इनके द्वारा छापी गयी बाइबल को गुटेनबर्ग बाइबल के नाम से भी प्रसिद्ध है।
विश्व में छापाकला की खोज 6 नवंबर 1771 ई में एलायंस सेन फेल्डर ने सर्वप्रथम चित्रकला ग्राफिक में छापा कला की खोज की जिसे ऑफसेट प्रिंटिंग कहा जाता है।
आधुनिक समय में छापा चित्रण की चार मुद्रण प्रकिया है जिनमें कलाकार भिन्न-भिन्न विधियों द्वारा स्वयं अपने ब्लॉक का निर्माण करते हैं ओर अपने चित्रों के प्रिंट तैयार करते हैं जो निम्न है -

  1. उभरी सतह से मुद्रण (रिलीफ प्रिंटिंग) - ब्लॉक प्रिंटिंग(220 ई. पु.), - वुडकट , लिनोकट
  2. खोदी गई सतह से मुद्रण (इंटेगलियो प्रिंटिंग) - एचिंग/अमलांकन(1515), एक्वान्टिट,ड्राई पॉइंट , मेजॉटिन्ट, विस्कॉसिटी
  3. समतल सतह से मुद्रण (प्लेनोग्राफी) - लिथोग्राफी,1796 ई. /सरफेस
  4. स्टेन्सिल - स्क्रीन प्रिंट /सिल्क स्क्रीन/ सेरिग्राफी- नायलॉन, सिल्क
      
    (उदाहरण - लेटरप्रेस - लिथोग्राफी - ऑफसेट - डिजिटल)

  • भारत में 1556 में गोवा में पुर्तगालियों ने 6 सितम्बर 1556 को समुद्री जहाज द्वारा गोवा में लकड़ी की दो पहली छापमशीने उतारी। गोवा में इसी वर्ष "कोन्क्लुसॉस आउटरास कोइसास" पुस्तक का मुद्रण किया जो भारत में मशीन द्वारा मुद्रित प्रथम पुस्तक थी। 
  • Note - भारत का सबसे पहला छापाखाना 'सेन्ट पॉल कॉलेज' गोवा का है।
  • भारत में अंग्रेजो द्वारा सर्वप्रथम प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना 1664 ई में मुम्बई में की गई।
  • भारत में राजा रवि वर्मा ने लिथोग्राफी की स्थापना 1894 में मुम्बई के घाटकोपर नामक स्थान पर माधवराव की सहायता से की।

1. उभरी सतह मुद्रण (Relief printing)

  • उभरी हुई सतह के द्वारा छापना एक प्राचीन विधा है। इस मुद्रण में उभरी हुई सतह पर रबर रोलर से स्याही लगाकर छाप ली जाती है।
  • इसमे लिनोकट, 【वुड कट , वुड उत्कीर्ण 】 कोलोग्राफ आदि विधिया आती है।
  • लिनोकट/रबर शीट इसे छाप के लिए तैयार करते समय सबसे पहले लिनोशीट पर पेंसिल से ड्राइंग बनाते हैं (स्कैच),फिर औजारों से उत्कीर्ण करते है एक्स्ट्रा जगह को खोदरक(कार्विंग) निकाल देते हैं वही रखते हैं जिसकी हमे छाप लेनी हो उसके बाद हम रबर रोलर उस उभरी सतह पर एक समान स्याही(इंकिंग) फैला देते हैं,
  • फिर उसके ऊपर कागज रखकर दाब देकर उसका प्रिंट(प्रिंटिंग) लेते हैं, और वो आकृति कागज पर छप जाती है।
  • वुड कट में लकड़ी के ब्लॉक पर उभरी हुई सतह पर स्याही लगाकर छाप लिया जाता है।
  • Note - छापकला की सबसे प्राचीन तकनिक रिलीफ प्रिंटिंग है।

2. अंदर की सतह से मुद्रण (Integelio printing)

  • इस पद्धति का प्रारंभ 15 वी सदी में किया गया था। इसमे धातु की प्लेट जिंक, कॉपर(ताम्र), स्टील आदि का प्रयोग किया जाता है।
  • इसमे धातु कि प्लेट में ड्राई पॉइंट पद्धति में बारीक उपकरणों द्वारा प्लेट के ऊपर रेखाओ द्वरा चित्र बनाकर प्लेट के अंदर खोदे गए भाग एवं प्लेट में स्याही लगाकर ऊपर के समतल भाग की स्याही को पोंछने के बाद खोदे गए भाग में अंदर रही स्याही से छाप कागज से ली जाती है।

अमलांकन/एचिंग

  • इस पद्धति का प्रारंभ 16 वी शदी में किया गया। इस पद्धति में धातु की प्लेट पर ग्राउंड (मोम ओर डामर) का कोट लगाकर एक परत बनाई जाती है। बाद में प्लेट के ऊपर उकेरणी द्वारा रेखाओ से चित्र बनाकर प्लेट को एसिड के घोल में डालकर रेखाओ को आवश्यकतानुसार गहरा किया जाता है। बादमें इसमे उत्कीर्ण किये भाग में स्याही लगाकर छाप ली जाती है। (नाइट्रिक अम्ल, नम कागज)
  • Note - एचिंग में प्राथमिक अंकन को इंटेगेलिओ कहते हैं

एक्वान्टिट

  • इसका आविष्कार 18 वी सदी में फ्रांस में हुआ बाद में 1770 के बाद से यूरोप में प्रयोग किया जाने लगा।
  • इसमे रेखाओ का प्रभाव रहता है, छाया-प्रकाश का प्रभाव पुर्ण प्रभाव बनता है।
  • ईस पद्धति में प्लेट पर रेजिन को समान रूप से छिड़ककर एक पतली परत बनाई जाती है। फिर इसे गर्म किया जाता हैं । जिससे यह प्लेट खुरदरा प्रभाव देती है।

मेजॉटिन्ट

  • इस पद्धति में छाया प्रकाश का प्रभाव बनाने के लिए रोलर्स और रॉकर (दांतेदार औजार) प्रयोग में लिए जाते हैं।
  • तथा अनावश्यक भागों को खुरचनी से प्लेट के ऊपर से खुरच कर हटा कर प्लेट के ऊपर रंग लगाकर ऊपर से सतह को पोछकर प्लेट से छाप ली जाती है।

3. समतल सतह से मुद्रण(planography)

  • इसमे लिथोग्राफी, ऑफसेट मुद्रण, आदि तकनीकों से छाप तैयार की जाती हैं।
  • 20 वी शताब्दी के प्रारंभ में छापाकला का मुख्य केंद्र कोलकाता था। गगेंद्रनाथ प्रथम भारतीय चित्रकार थे जिन्होंने लिथो माध्यम से अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति प्रदान की।
  • लिथोग्राफी - यह शब्द यूनानी भाषा का है जो दो शब्दों से मिलकर बना है, लिथो का अर्थ है पत्थर, ग्राफ का अर्थ है लिखना या छापना। इसमें चुना पत्थर का प्रयोग किया जाता है।

स्टेन्सिल / सेरिग्राफी

इस पद्धति में लकड़ी के फ्रेम के ऊपर बारीक मैस वाला प्लास्टिक(सिलक्स्क्रीन) का कपड़ा अच्छी तरह से तान कर उसके ऊपर विभिन्न तकनीकों जैसे -पेपर स्टेन्सिल, प्रकाश संवेदी पदार्थों से स्टेन्सिल, फ़िल्म आदि से चित्र की स्टेन्सिल बनाकर कपड़े के ऊपर स्याही लगाकर रबर की स्कुईजी द्वारा स्याही को स्टेन्सिल के अंदर से नीचे रखे कागज पर चित्र की छाप ली जाती हैं।
भारत में सर्वप्रथम सेरिग्राफी का प्रयोग के. जी. सुब्रमण्यम ने किया था।

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