प्रागेतिहासिक काल मे मानव शैलाश्रयों एव गुफाओ में रहता था तथा अभिव्यक्ति के लिए ध्वनि संकेतो का सहारा लेता था,मनुष्य ने अपनी भावनाओं व विचारों को व्यक्त करने के लिए सर्वप्रथम भाषा का ही प्रयोग किया चाहे वह किसी भी रूप में हो ।
उस मानव ने अपनी भावनाओं व एव विचारों को सुरक्षित रखने एव भावी पीढ़ी को सम्प्रेषित करने के लिए चित्रो एव चिन्हों का प्रयोग आरंभ किया और इन चिन्हों व चित्रों से लिपी का विकास हुआ ।
जिससे पत्रों, पुस्तको आदि के जरिये अपने विचारों एव ज्ञान को सुरक्षित रखा जाने लगा जिनकी पहुँच कुछ लोगों तक थी।
इसी को सभी लोगों के पास पहुचाने के लिए मुद्रण का आविष्कार किया गया।
प्रागेतिहासिक काल से प्रारंभ करें तो तत्कालीन गुफा चित्रो में भी हमे छापाकला का एक प्राथमिक स्वरूप दिखाई देता है।
जो हाथ एवं पैरों के छाप के निशान हैं। जो प्राय लाल, काले तथा पीले रंगों से गुफा की नम दीवारों पर अंकित किये गए हैं।
ये चित्र दो प्रकार के है निगेटिव तथा पॉजिटिव।
निगेटिव प्रकार में हाथ को दीवार पर रखकर मुँह अथवा हड्डी की नली से रंग फूंका गया, जिससे हाथ के आस पास की जगह रँगीन हो गई और हाथ की छाप का निगेटिव बन गया।
दूसरे प्रकार के चित्रों में हाथ को रंग में डुबोकर उसकी छाप लगाने से हाथ के निशान बन गये ।
लकड़ी के ठप्पों या ब्लॉक द्वारा छपाई के कुछ शुरूआती प्रमाण वर्तमान चीन से भी मिलते हैं। जिसका काल लगभग 220 ईसा पूर्व माना जाता है।
8 वी शदी में उभारदार सतह द्वारा मुद्रण सर्वाधिक विकास हुआ। 868 में छापी गई पांडुलिपि हरिक सूत्र इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
प्रिंटिंग प्रेस की खोज सबसे पहले जर्मनी के जोहान गुटेनबर्ग इन्होने 1440 में मूवेबल टाइप की भी रचना की।
इनके द्वारा छापी गयी बाइबल को गुटेनबर्ग बाइबल के नाम से भी प्रसिद्ध है।
विश्व में छापाकला की खोज 6 नवंबर 1771 ई में एलायंस सेन फेल्डर ने सर्वप्रथम चित्रकला ग्राफिक में छापा कला की खोज की जिसे ऑफसेट प्रिंटिंग कहा जाता है।
आधुनिक समय में छापा चित्रण की चार मुद्रण प्रकिया है जिनमें कलाकार भिन्न-भिन्न विधियों द्वारा स्वयं अपने ब्लॉक का निर्माण करते हैं ओर अपने चित्रों के प्रिंट तैयार करते हैं जो निम्न है -
इस पद्धति में लकड़ी के फ्रेम के ऊपर बारीक मैस वाला प्लास्टिक(सिलक्स्क्रीन) का कपड़ा अच्छी तरह से तान कर उसके ऊपर विभिन्न तकनीकों जैसे -पेपर स्टेन्सिल, प्रकाश संवेदी पदार्थों से स्टेन्सिल, फ़िल्म आदि से चित्र की स्टेन्सिल बनाकर कपड़े के ऊपर स्याही लगाकर रबर की स्कुईजी द्वारा स्याही को स्टेन्सिल के अंदर से नीचे रखे कागज पर चित्र की छाप ली जाती हैं।
भारत में सर्वप्रथम सेरिग्राफी का प्रयोग के. जी. सुब्रमण्यम ने किया था।