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प्रभाववाद Impressionism - Edvard Manet, Claude Monet, Renoir, Comte Pissarro, Alfred Sisley, Dega

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  • Scarlett Hill👋
    Scarlett Hill👋
    June 09, 2025
प्रभाववाद Impressionism - Edvard Manet,Monet, Renoir, Pissarro, Sisley, Dega
Image - प्रभाववाद Impressionism - Edvard Manet,Monet, Renoir, Pissarro, Sisley, Dega

प्रभाववाद (impressionism)

  • प्रभाववाद 19वीं सदी का एक कला आंदोलन था, जो पेरिस-स्थित कलाकारों के समुह द्वारा आरंभ हुआ,
  •  जिनकी स्‍वतंत्र प्रदर्शनियां 1870 और 1880 के दशक में जिससे उन्हें प्रसिद्धि मिली ,इस आंदोलन का नाम क्‍लाउड मॉनेट की कृति 'सूर्योदय के प्रभाव' से स्वीकारा गया।
  • प्रभाववादी कलाकार अपने चित्रण के लिए प्राकृतिक दृश्य, शहरों और दैनिक जनजीवन के सामान्य घरेलू जीवन तथा सामाजिक प्रसंगों को चुनते थे इसीलिए कुछ विद्वान इसे यथार्थवाद का ही बदला हुआ रूप कहते हैं । 
  • प्रभाववाद व यथार्थ वाद में यह अंतर है यथार्थवाद का विषय अस्तित्व उद्देश्यपूर्ण परंतु प्रभाववाद का विषय सौंदर्य की अनुभूति को जागृत करना था । प्रभाववाद के कारण आधुनिक कलाकारों में स्वतंत्र विचार से व्यक्तिगत अनुभूति के अनुसार चित्रण करने का साहस हुआ।

  • आधुनिक चित्रकला के जन्मदाता पॉल सेजान को माना जाता है प्रभाववाद शैली की रंगाकन पद्धति को इंद्रधनुष रंगाकन कहते थे।


प्रभाववाद का बीजारोपण

  • प्रभाववाद का बीजारोपण 1863 में हुआ उस समय जब पेरिस में अस्वीकृत चित्रों की राष्ट्रीय प्रदर्शनी आयोजित हुई जिसमें एद्वार माने का चित्र 'तृण पर भोजन' जिसकी बहुत कटु आलोचना हुई।
  • 1863 की राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में 4000 से अधिक चित्र अस्वीकृत हुए इससे अस्वीकृत चित्रों की प्रदर्शनी में जो कलाकार थे उन्होंने इसका विरोध किया । सन 1874 में इन चित्रकारों ने मिलकर एक स्वतंत्र प्रदर्शनी आयोजित करने का विचार किया और 1874 में प्रभाववाद की पहली प्रदर्शनी लगाई गई जिसमें लगभग 30 कलाकार थे इस प्रदर्शनी में क्लोद मोने का चित्र “सूर्योदय का प्रभाव” प्रदर्शित किया गया एक कला समीक्षक “लुई लेराय” उन्होंने ईस प्रदर्शनी की निंदा की और 
  • शारिवारी पत्रिका में एक लेख प्रकाशित किया। प्रदर्शकों ने भातृ मंडल को प्रभाववादी चित्रकार नाम दिया। चित्रकारों की हंसी उड़ाई गई लेकिन इन चित्रकारों को इस बात का संतोष था कि उन्हें अपने आंदोलन (भातृ मंडल) का नाम मिल गया और इस तरह इस आंदोलन का नाम प्रभाववाद रखा गया ।
  • 1874 में प्रभाववादी कलाकारों की पहली प्रदर्शनी हुई।
  • 1877 में प्रभाववादी कलाकारों की तीसरी प्रदर्शनी हुई।
  • 1879 में प्रभाववादी कलाकारों की चौथी प्रदर्शनी हुई।
  • प्रभाववादी शैली के प्रमुख चित्रकार -
  • एदगार देगा, 2- क्लोद मोने, 3- पिसारो और सिसली, 4- रेनवार, 5- लोत्रेक, 6- माने

एद्वार माने

  • इनका जन्म 1832 में एक सधन परिवार में हुआ, उनके पिता एक न्यायाधीश थे माने को बचपन से ही चित्रकार बनना चाहते थे। चित्रकार कत्युतर की चित्रशाला में 6 साल तक कला अध्यन किया
  • इटाली जाकर उन्होंने पुनर्जागरण कालीन प्रसिद्ध कलाकार वेलास्केप के चित्रों का अध्ययन किया,माने के चित्रों पर वेलास्केप का अधिक प्रभाव पड़ा।
  • फ्रांस (पैरिस) में 1863 में अस्वीकृत चित्रों की प्रदर्शनी आयोजित की गई थी जिसमे एद्वार माने का चित्र 'तृण पर भोजन' जिसकी कटु आलोचना हुई थी। उस समय लगभग 4000 चित्र अस्वीकृत किए गए थे| तब कलाकारों ने विरोध किया और फिर से चित्रों की प्रदर्शनी रखी गई जिसमें भी लगभग 600 से अधिक चित्र वापिस लिए गए। इससे 2 साल पहले माने के चित्र 'स्पेनिश गिटारवादक' ओर 'मातापिता के व्यक्तिचित्र' राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में स्वीकारा हुए थे उनकी काफी प्रशंसा भी हुई थी। 
  • माने की रंगांकन पद्धति में एक नवीनता थी वे रंगों के हल्के व गहरे रंगों के क्षेत्रों को स्पष्ट व अलग ही अंकित करते थे। परम्परागत विषयों को छोड़कर ओर कल्पना से चित्रण करने के बजाय प्रत्यक्ष देखकर चित्रण करना आरम्भ किया। 
  • 'ओलम्पिया' देवता के चित्रण के लिए उन्होंने किसी स्त्री को मॉडल के रूप में बिठाया तथा 'तृण पर भोजन' में अपने मित्र व एक स्त्री मॉडल को देख कर मानवाकृतियां चित्रित की।

  • माने के चित्र 'तृण पर भोजन' में भी यह विशेषता है इस चित्र की तुलना ज्योर्जियों के चित्र 'चारागाह में समूह-संगीत' से की जाती है। 1865 में माने ने आलम्पिया चित्र बनाया जो राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में स्वीकृत हुआ यह चित्र इतना प्रसिद्ध हुआ कि कला मंत्रालय ने इस चित्र की रक्षा के लिए सिपाही की नियुक्ति की।
  • 'ओलम्पिया' तिशेन के चित्र 'अर्बिनो की वीनस' मिलता जुलता था।
  • 'ओलम्पिया' माने की पूर्ण विकसित शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है।यह चित्र समतल दो भागों में विभाजित है।
  • 1859 में माने का चित्र 'एब्सिन्थ पीनेवाला' राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी के लिए भेजा जो स्वीकृत हुआ कत्युतर ने इसके बारे में कहा- यह किसी एब्सिन्थ पीनेवाला को बनाया होगा।
  • 1862 में पैरिस में स्पेनिश नर्तकों व वादकों के कार्यक्रम को देखते हुए माने ने कुछ तेलचित्र व रेखाचित्र बनाये।
  • 1865 की राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में माने का चित्र 'आलम्पिया' स्वीकृत हुआ कास्तान्यारी ने इस चित्र को देखकर 'ताश का पत्ता' कहकर इसकी निंदा की।
  • 1866 की प्रदर्शनी में उनका चित्र 'बांसुरीवाला' अस्वीकृत हुआ तथा 1868 में उनके दो चित्र 'तोतेवाली स्त्री','एमिल जोला' स्वीकृत हुए।
  • 1873 में माने के द्वारा बनाया हुआ 'अच्छी बीआर' चित्र राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में स्वीकृत हुआ यह चित्र लोगों को बहुत पसंद आया प्रसिद्ध डच चित्रकार फ्रांस हॉल से प्रभावित होकर चित्रविषय व रंग-संगति में उनका अनुसरण करके यह चित्र बनाया।
  • 1874 में माने ने 'नाव की सवारी' चित्र बनाया जो पूर्ण प्रभववादी चित्र था।इसके पश्चात माने ने प्रभववादी चित्र बनाने शुरू किए। 'नाव की सवारी' वास्तविकतापूर्ण है जबकि 'तृण पर भोजन' रचनात्मक है।
  • 1879 में 'जोर्ज मूर का व्यक्तिचित्र' व 'फोलिय बर्जेर का मदिरागृह' चित्र बनाये।


क्लोद मोने

  • क्लोद मोने एक फ्रांसीसी चित्रकार थे। इनका जन्म 1840 पैरिस में हुआ था इनके पिता एक पंसारी थे।ये प्रभाववाद आंदोलन के संस्थापक में से एक हैं । वे प्रभववादियो के नेता थे।
  • मोने को प्रभाववाद का जनक कहा जाता है। उम्र के 16 वे साल में वे चित्रकार व व्यंग्य-चित्रकार के रूप में प्रसिद्ध हुए। इनके चित्र दुकान की प्रदर्शन खिड़कियों में लगाये जाते थे। 1859 में जब पैरिस गए तब प्रकृतिचित्रण में काफी रुचि बढ़ गई थी। मोने के व्यक्तिचित्र की यथार्थता को देखकर ग्लेयर ने कहा-"वह भद्दा है, वास्तविकता के अध्ययन से चित्रण में सहायता मिलती है परंतु आदर्शों के पालन से ही चित्र सुंदर व कलापूर्ण बनता है"।

  • 1866 मे मोने ने कामिल नाम की लड़की का व्यक्तिचित्र बनाया उसी साल ये चित्र राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में प्रदर्शित हुआ। दूसरे साल उन्होंने अपना प्रसिद्ध चित्र 'बगीचे में महिलाएं' बनाया जो उनके मित्र बाजिय ने 2500 फ्रांक देकर खरीदा।
  • उन्होंने प्रभाव वादी सिद्धांतों को चरम सीमा तक सिद्ध करने का काम किया 1874 में जब असंतुष्ट कलाकारों की प्रदर्शनी लगी थी तब मोने का चित्र 'सूर्योदय का प्रभाव' भी लगाया गया और इस पेंटिंग की बहुत आलोचना हुई
  • प्रभाववाद का नामकरण इसी पेंटिंग के नाम पर हुआ।फ्रांस की सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय सम्मान से नवाजा।
  • 1890 में मोने ने 'घास का ढेर' चित्र श्रंखला आरंभ की।
  • 1901 में मोने ने लंदन में टेम्स नदी के 37 चित्र बनाये।
  • मोने ने 'कुमुदिनी के फूलों' की चित्रमालिका तैयार की । मोने के 8 चित्रों की अंतिम चित्रमालिका 'कुमुदिनी के फूल' पैरिस के तिव्लेरी बगीचे में एक छोटे तालाब के चारों और लगाई गई इस चित्रमालिका मे कहीं भी जमीन या आसमान को चित्रित नहीं किया गया पूरे चित्र में पानी ही पानी दिखाया गया है। मोने को पेंटर ऑफ सीरीज कहा जाता है।

  • चित्रकृतियां -सूर्योदय का प्रभाव, बगीचे में महिलाएं, वाटर लिली, चिनार वृक्ष, रुएन का गिरजाघर, सूखी घास का ढेर, कुमुदिनी के फूल, वसंत ऋतु में मैदान आदि।

रेनवार

  • रेनवार का जन्म 1841 में एक निर्धन परिवार में हुआ था हल्के जामुनी और नीले रंग के शेडस रेनवार को बहुत पसंद थे |
  • 1862 में रेनवार ने ग्लेयर की चित्रशाला में प्रवेश लिया वहीं उनकी मुलाकात मोने से हुई । रेनवार प्रभाववादी कलाकार थे।
  • जिन्होंने दृश्य के वाहय रुप के साथ विषय वस्तु जनित निजी भावनाओं को चित्रित किया।
  • देगा का दृष्टिकोण उदासीनता का था जबकि रेनवार का दृष्टिकोण स्नेह और प्रसन्नता का था देगा ने स्त्री का चित्रण उसके यथार्थ व्यक्तित्व के साथ किया उसमें स्त्री को सुंदर या आदर्श दिखाने का प्रयत्न नहीं है जबकि रेनवार के स्त्री चित्रण में स्त्री आदर्श सौंदर्य लिए हुए हैं 
  • जिसका आधुनिक रूप हम रेनवार की कला में देख सकते हैं 1870 की राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में रखा गया चित्र 'ग्रिफोनवाली स्नानमग्ना युवती' है। 1876 में बनाया गया उनका चित्र "झूला" व 1877 की चौथी प्रदर्शनी में दिखाया गया चित्र 'ल मूलं द ला गालेत' प्रभववादी शैली के उत्कृष्ट चित्र है। रेन्वार के चित्र 'जलपर्यटकों का भोजन' यही एक ऐसा चित्र है जिसमें उन्होंने अपने मित्रों को उनकी शारीरिक विशेषताओं को दर्शाते हुए चित्रित किया गया है।
  • 1878 में रेन्वार ने एक व्यक्तिचित्र 'मादाम शार्पातीय व उनकी पुत्रियां' जो राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में स्वीकृत हुआ।
  • कलाकृतियां- 'पियानो पर दो लड़कियों', 'स्नानमग्ना युवतियां', 'बुगीवाल का नृत्य'
  • कट्टर प्रभाववादियों में माने के बाद पिसरो व सिसली को स्थान दिया जाता है।


कामीय पिसारो

  • इनका जन्म 1831 में डैनिश वेस्ट इंडीज की राजधानी सेंट टॉमस में हुआ। 1855 की पैरिस की विश्वप्रदर्शनी मेंकुर्बे के चित्रों को देखने से उनको काफी प्रेरणा मिली। स्विस की चित्रशाला में उनका मोने से मुलाकात हुई। 1859 में पिसरो के चित्र राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में स्वीकृत हुए। 1873 में पिसरो का सेजान से परिचय हुआ पिसरो ने प्रभववादी अंकनशेली से अवगत करवाया।
  • 1884 में उनका जॉर्ज सोरा से परिचय हुआ और बिंदुवादी पद्धति में चित्रण कार्य करने लगे।
  • शिक्षा काल में सेजान, वानगो, गोगिन का इन्होंने मार्गदर्शन किया। शहरी रास्तों को चित्रित करने में पिसारो की बहुत रुचि थी |


अल्फ्रेड सिसली

  • इनका जन्म पैरिस में 1839 में हुआ इनके पिता एक व्यापारी थे।
  • उम्र के 18 वे साल में पैरिस में ग्लेयर की चित्रशाला में भर्ती हुए।
  • इन्होंने मार्लि,बुगीवाल, आरजातोई, लुवेशियन आदि पैरिस के महानगरों के दृश्य चित्र बनाये।
  • आकाश का चित्रण करने में सिसली बहुत माहिर थे। यह बहुत गरीब थे इसीलिए इन्होंने पेरिस में रहते हुए वहां के आसपास के उपनगरों का चित्रण किया । नदी, झरने ,बाग-बगीचे, आकाश के चित्र बनाने में यह बहुत माहिर थे।


देगा

  • देगा का जन्म 1834 में पेरिस में सधन परिवार में हुआ था इनके पिता बैंकर थे।उन्होंने बचपन से ही चित्रों की अनूकृतियां बनाना आरंभ कर दिया था।
  • 1862 में उनकी मुलाकात माने से हुई और वे प्रभाववाद में शामिल हो गए। देगा के गुरु थे लुई लामोत जो आंग्र के शिष्य थे।
  • लेकिन लुई लामोत के मार्गदर्शन से देगा संतुष्ट नहीं थे और लुवृ संग्रहालय जाकर वहां के इटालियन कलाकारों की कृतियों का निरीक्षण किया करते | आरंभ में उन्होंने यथार्थवादी शैली में कुछ चित्र बनाएं लेकिन बाद में व्यक्ति चित्रण पर ध्यान केंद्रित किया। आरंभ में देगा ने अधिक तेल रंगों में चित्र बनाये ओर बाद में रंगीन खड़िया मिट्टी का भी प्रयोग करने लगे थे।
  • 1855 में पैरिस हुई प्रदर्शनी में देगा को कुर्बे के चित्र देखने को मिले उनसे काफी प्रभावित हुए। देगा ने आरंभ में 'माने का व्यक्ति चित्र','घोड़े पर सवार महिला', 'जलपान गृह की गायिकाएं', बेले नृत्य' आदि चित्र बनाए ।

  • देगा प्रभाववादी शब्द से घृणा करते थे इसीलिए इन्होंने 1879 में चौथी प्रदर्शनी में उसके विज्ञापन से प्रभाववाद शब्द हटवा दिया था। वे खुले स्थानों में जाकर चित्र करना पसंद नहीं करते थे क्योंकि प्रकाश और वायु जैसे चंचल तत्वों को महत्व देना उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं था । देगा उत्कृष्ट मूर्तिकार भी थे उन्होंने 'तरुण नृतकी', 'दौड़ने वाला घोड़ा' मूर्तियां बनाई। देगा कि मूर्तिकला के बारे में रेन्वार ने कहा था "उनको में पहला मूर्तिकार मानता हूं"
  • 1917 में उनकी मृत्यु हो गई ।


आंरी द तुलुज लोत्रेक

  • लोत्रेक का जन्म 1864 में बहुत ही सम्पन व अमीर खानदान में हुआ। लोत्रेक को विज्ञापन कलाओं के लिए जाना जाता है इसलिए उनकी कला को पूर्णरूप से प्रभाववादी भी नहीं मान सकते उन्होंने पेरिस की नृत्य ग्रहों, मदिरा ग्रहों, वेश्या ग्रहों और सर्कस के अंतर्गत के दृश्यों ओर सामान्य जनजीवन को भी इन्होंने यथार्थ चित्रित किया। देगा को आदर्श चित्रकार मानते थे और उनकी कृतियों को सबसे अधिक पसंद करते थे।
  • पेरिस के कुख्यात 'रूए आम्रज की बैठक' को सजाने का काम मिला इस मौके पर उन्होंने वैश्याग्रह के उन्होंने बहुत सारे चित्र बनाएं। 1888 मैं उन्होंने एक चित्र बनाया था 'सर्कस फनांदो' बहुत महत्वपूर्ण था।
  • 1891 में 'मुलं रुज' के लिए एक विज्ञापन चित्र बनाया जिससे उनको ख्याति प्राप्त हुई।
  • उन्होंने लगभग 30 विज्ञापन चित्र बनाएं जिनमें 'पैरिस के बगीचे में जान आवरिल" सबसे उत्कृष्ट एव महत्वपूर्ण है।

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