मौर्यकालीन कलाकृतियां
धौली की चट्टान - यह उड़ीसा के पूरी जिले में स्थित हैं। यहां पहाड़ी पर विशाल हाथी की आकृति उत्कीर्ण की गई हैं,तथा अशोक कालीन शिलालेख खुदे हुए हैं। जो मौर्यकालीन मूर्तिकला का उत्तम उदाहरण है।
इसमें हाथी को बलिष्ठ व समानुपाति बनाया गया है,दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है मानो हाथी खड़ा हुआ हैबज्रासन - यह बज्रासन बोधगया में बलुए पत्थर से बना हुआ है। इस पर ओपदार मौर्यकालीन पोलिश की गई हैं। तथा इस पर हंस व फूलों की आकृतियां उकेरी गई है। हूबहू ऐसी आकृति हमे साँची में भी देखने को मिलती हैं।
इस जगह पर गौतम बुध को बोधिसत्व की प्राप्ति हुई थी और इसी स्थान पर सम्राट अशोक ने वज्रासन वह बोधीग्रह का निर्माण करवाया था तथा प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में यहां पर मंदिर का निर्माण करवाया गया।
बज्रासन के अवशेष सबसे पहले कनिघम के द्वारा उत्खनन करवाने पर मिले थे।
कालशिला प्रज्ञापन - इस चट्टान पर हाथी सिर्फ रेखाओं से उकेरा गया है तथा ब्राह्मी लिपि में एक लेख लिखा गया और उसी स्थान पर ब्राह्मी लिपि में 'गजमेत' शब्द लिखा गया जिसका अर्थ होता है 'सर्वश्रेष्ठ हाथी'
तथा यह हाथी बुध का प्रतीक माना गया है। (उत्तरप्रदेश के देहरादून )
वेसनगर का स्तम्भशीर्ष - तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के लगभग हमें दो स्तंम्भ शीर्ष बेसनगर, मध्य प्रदेश से प्राप्त हुए हैं
जिसमें एक स्तंभ शीर्ष कल्पवृक्ष के रूप में तथा दूसरा स्तम्भ शीर्ष ताड़ वृक्ष के रूप में पत्ते व फलों के साथ उकेरा गया है, तथा इन वृक्षों पर वस्त्राभूषण व सिक्कों से भरे थैले लटकाए हुए दर्शाए गए हैं।
वर्तमान में कल्पवृक्ष स्तंम्भ शीर्ष कोलकाता के भारतीय संग्रहालय में स्थित है।
दूसरा ताड़वृक्ष स्तंम्भ शीर्ष वर्तमान में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक व पुरातात्विक विभाग के संग्रहालय में है।यक्ष मूर्तियां -
Most सबसे प्राचीन ऐतिहासिक मूर्ति परखर ग्राम की यक्ष मूर्ति। (मथुरा)
इसी मूर्ति को कुछ विद्वान अजातशत्रु की मूर्ति भी कहते है।
बेसनगर से प्राप्त यक्ष प्रतिमा जिसका स्थानीय नाम तेलीन है और यह वर्तमान में भारतीय संग्रहालय कोलकाता में संग्रहित है। ऊंचाई 6 फिट 7 इंच।
सोपारा से प्राप्त यक्ष मूर्ति यह मूर्ति राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली में संग्रहित है।
प्राचीन वाराणसी के राजघाट से प्राप्त त्रिमुखी यक्ष मूर्ति और यह मूर्ति वर्तमान में भारत कला भवन वाराणसी में संग्रहित है।
भारतीय मूर्तिकला | मौर्यकालीन मूर्तिकला | शुंग सातवाहन काल
- शुंगवंश की स्थापना पुष्यमित्र शुंग ने अंतिम मौर्य शासक बृहदत की हत्या करके शुंग वंश की नींव डाली थी 185 ईसा. पूर्व में।
- शुंग वंश की स्थापना के साथ ही क्लासिकल युग की शुरुआत हो गई थी।
- इस युग में कला का स्थानीय देश की स्थान पर भौगोलिक विस्तार के कारण कला का सर्वदेश्य रूप उभर कर सामने आया।
- शुंगकालीन कुछ महत्वपूर्ण कलाकृतियां -
- भरहुत (खोज-कनिघम 1873 में)
- साँची (खोज-टेलर)
- अमरावती (खोज-नील मैकेंजी 1797 में)
- नागार्जुन कोंडा, पश्चिम भारत में काले, भांजा, पितलखोरा आदि।
साँची स्तुप
अशोक ने लगभग 84000 स्तूपों का निर्माण करवाया था। जिनमें से एक सांची भी प्रमुख हैं।
सांची स्तुप मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में विदिशा से 9 किमी दूर उत्तर पश्चिम में स्थित है।
इस स्तुप का निर्माण ईंटो से सर्वप्रथम मौर्य शासक सम्राट अशोक ने करवाया था। तथा इसका बाद में प्रस्तर युक्त निर्माण शुंग शासक ने करवाया था।
सांची स्तुप की खोज जर्नल टेलर ने की थी। इस स्तुप पर बुद्ध के जन्म जन्मांतर की कहानियां अंकित है। (जातक कथा)
इस स्तुप का पुनर्निर्माण करवाने की पहली सफल कोशिश सर जॉन मार्शल ने की 1912 से 1919 ई. के बीच ।
स्तुप की संरचना -
सर्वप्रथम अशोक ने एक स्तंम्भ खड़ा करवाया था। उसके बाद में शुंग शासको ने इसमे परिवर्तन करते हुए बहुत विकास करवाया था। तथा इसकी ऊंचाई लगभग 54 फिट है इसका व्यास 120 फिट। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित।
स्तूप के चारों और बनी वैदिका व तोरण द्वारों का निर्माण शुंगकाल में हुआ।
गुम्बद के चारों और चबूतरा बना है इस चबूतरे की ऊंचाई 16 फीट है जो पद्प्रक्षिणापथ में काम आता है।
तथा पद्प्रक्षिणापथ में 7 फिट लम्बे शिलाबट बिछे हुए हैं। यहां पहुचने के लिए दक्षिण में दोहरी सीढ़ी बनी हुई है।
तथा 9 फिट ऊंचे अष्टकोणीय स्तम्भों को बांधने के लिए 2 ऊंचा उष्णीय है।
तथा इन स्तम्भों के बीच मे 3.15 इंच की जगह छोड़-छोडकर दो-दो फिट चौड़ी सूचियां लगी हुई हैं।
सांची में बने सम्पूर्ण अलंकृत तोरण द्वार 34 फिट ऊंचे है।
सांची के सभी तोरण द्वार ईसा. पूर्व. प्रथम में बने हुए हैं।
सबसे पहले दक्षिण द्वारा बना यही सांची का मुख्य प्रवेश द्वार है।
बाद में क्रमशः उत्तर, पूर्व, पश्चिम के तोरण द्वार बनाये गए।
चारों तोरण द्वारों पर अधिपति है जो व्याधियों से रक्षा करते हउतर दिशा - राजकुबेर
पूर्व दिशा - गन्धर्व राज धृतराष्ट्र
दक्षिण दिशा - नागराज
पश्चिम में - कुशमांडो राज विरुपाक्ष
तोरणों में खंभो की ऊंचाई 24 फिट है। खम्बों के सबसे ऊपर सूची बनी हुई है, तथा इन पर त्रिरत्न व धर्मचक्र बना हुआ था जो अभी खण्डित अवस्था में है।
इन सूचियों के आस-पास में हाथियों की आकृतियां बनी हुई है। जो तोरण द्वार के ऊपर बनी हुई मुर्तियों को सहारा प्रदान करती हैं।
सबसे नीचे की सूची व स्तंम्भ के बीच की दूरी को भरने के लिए नीचे दोनों और द्वारपाल यक्ष बनाये गए हैं।
सांची के तोरण द्वारों में रिक्त स्थानों की पूर्ति करने के लिए यक्ष व यक्षणियों की मूर्तियां बनी हुई है म
खम्बों के शीर्ष भाग पर शेर, हाथी, वामन पीठ से पीठ सटाए बैठे हैं।
सांची स्तुप पर अभी तक 5 जातक कथाओं को पहचाना गया है।
छदन्त जातक कथा
साम जातक कथा
वेस्सान्तर जातक कथा
महाकपि जातक कथा
अलम्बुष जातक कथा
साँची स्तुप पर मुख्य रूप से जिस देवता की मूर्तियां बनाई गई है वो इंद्र है।
जिसका विवरण कुछ इस प्रकार है -
इंद्र शाला का दृश्य
बुद्ध के जुड़ा उत्सव का दर्शय
साम जातक कथा का दर्शय
साँची स्तुप पर पशु-पक्षियों व वनस्पतियों का अंकन इसी स्तुप पर प्राकृतिक व कृत्रिम या स्वभाविक व काल्पनिक दोनों युगों में हुआ है।
साँची पर वृक्षों में आम का पेड़, अशोक, शालभंजिका, तथा कमल, कलपता तथा पुष्पपत्र आदि वृक्षों का रमणीय अंकन किया गया है।
Not - जॉन मार्शल ने साँची महास्तूप का नामकरण वानस्पति शैली कर दिया है।
साँची में जो आकृतियां बनी हुई है उनको मूर्तियां कहने की बजाय खुदे हुए चित्रांकन कहना उचित रहेगा।
क्यो की यहां हाथी दांत के नक्काशी के नमूने पर हुई है।
(खोदने की शैली)
भरहुत स्तुप (185 ईसा. पु. से 80 ईसा. पु. तक)
भरहुत स्तुप का निर्माण अशोक ने करवाया था, मौर्यकाल में इसका निर्माण सर्वप्रथम ईंटो से हुआ था। तथा बाद शुंगकाल में इसका निर्माण प्रस्तर से हुआ था।
इसकी खोज जनरल कनिघम ने 1873 में की।
भरहुत स्तुप मध्यप्रदेश के सतना जिले में स्थित है।
मजुमदार के अनुसार भरहुत का निर्माण विभिन्न कालक्रम में हुआ था। इसकी जानकारी हमे प्राप्त अभिलेख से मिलती है।
भरहुत स्तुप से मिले अभिलेख 185 ईसा. पु. से लेकर 75 ईसा. पु. तक के अंतर में लिखे गए हैं।
भरहुत के तोरण द्वार व वैदिका के अवशेष मिले हैं जो कोलकता संग्रहालय में रखे गए हैं कुछ इलाहाबाद संग्रहालय में।
भरहुत स्तुप की संरचना -भरहुत स्तुप का आकार अर्द्धगोलाकार गुम्बद के रूप में ईंटो से हुई थी।
भरहुत स्तुप में लाल रंग का चुनार पत्थर का प्रयोग किया गया है। (रवेदार पत्थर)
भरहुत स्तुप का व्यास 68 फिट है तथा इसके चारों और ऊंची मेधी बनी हुई है, इसमे ऊपर जाने के लिए सीढियां बनी हुई है।
साँची की तरह यहां पर भी तोरण द्वार बने हुए हैं इनकी ऊँचाई 22 फिट है।
वेदिका में आयताकार स्तम्भ बने हुए है जो एक दूसरे से जुड़े हुए हैं सुचियों के माध्यम से सुचियों की ऊंचाई लगभग 7 फिट 1इंच है।
भरहुत की कलाकृतियां -
बुद्ध की जन्म जन्मातर की कथाए
मानुसी बुधो से सम्बंधित दर्शय
देव समुदाय का दर्शय
जनरल कनिघम ने भरहुत का उत्खनन किया था इन्हें मुख्य तौर पर जातक कथाओं का विवरण मिला था वो निम्न प्रकार है-
40 जातक कथाओं का दर्शय
6 बुद्ध के जीवन से सम्बंधित दृश्य
लगभग 40 दर्शय देवताओं, नागराज व यक्ष-यक्षणियों की मूर्तियां मिली है। जिसमे उन मूर्तियों पर उनके नाम भी दर्शाये गए हैं।
जातक कथाओं के प्रमुख दर्शय -
हास्यपद दर्शय - यह दर्शय बन्दरो से सम्बंधित है, इस दर्शय में बंदर गाजे बाजे के साथ जा रहे हैं, तथा दूसरे दर्शय में एक मनुष्य का दांत संडासी से उखाड़ा जा रहा है उस दांत को एक हाथी खींच रहा है।
छदन्त जातक, सुजात जातक, महाजनक जातक, वेस्सान्तर जातक, आराम दुसक जातक आदि प्रमुख हैं।
स्त्रियों से सम्बंधित दर्शय - भरहुत में स्त्रियों की आकृति दो मंजिले भवन पर अंकित की गई है उनके आगे उनका नाम अंकित है। जो निम्न है - शुभद्रा, सुदर्शना, मित्रकेशी, आलमपुसा।
Note -
भरहुत शिल्प पर बने सर्वश्रेष्ठ चित्र - जेतवन का दान,माया देवी का स्वप्न।
भरहुत स्तुप की वैदिका पर चुलाकोका और सुदसना यक्षी बनाई गई है
भरहुत की कला में हास्य व्यंग्य का पुट है।
भरहुत की कला में लोककला का सम्मिश्रण है
अमरावती स्तुप (200 ईसा.पु.)
दक्षिण भारत में आंध्रप्रदेश के गंटूर जिले में अमरावती नामक स्थान पर स्थित हैं। कृष्णा ओर गोदावरी नदियों के बीच में।
अमरावती स्तुप के अभिलेख मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं।
लेखों में अमरावती का प्राचीन नाम धान्यकटक मिलता है। ऐसा प्रतीत होता है, कि मौर्य शासक अशोक ने अन्य स्थानों के समान यहाँ भी एक स्तूप का निर्माण करवाया था।
सर्वप्रथम 1797 ई. में मैकेंजी को इस स्तूप का पता चला था। उन्होंने यहाँ से प्राप्त शिलापट्टों तथा मूर्तियों के सुंदर रेखाचित्र तैयार किये थे।
यह स्तुप हीनयान और महायान दोनों से सम्बंधित है क्यो की इसपे दोनों समुदाय से सम्बंधित कार्य देखने को मिलते है।
Q. निम्न में किस नगर का प्राचीन नाम धन्यकटक था।
- भरहुत
- कानपुर
- कौशाम्बी
- अमरावती
अमरावती से कुछ दूरी पर धरणी किट से 33 मूर्तियां प्राप्त हुई थी जिसे रॉबर्ट्सन 1830 में लंदन संग्रहालय के लिए के गए।
अमरावती की संरचना -
इसकी वेष्टिनि इकहरी बनाई गई है, इसकी लम्बाई 800 फीट है तथा इसकी ऊंचाई 13 फिट है।
स्तुप का व्यास 160 फिट है, ऊंचाई लगभग 90 से 100 फिट।
अमरावती स्तुप में मूर्तिकला के प्रमाण 3 शताब्दी में मिलते हैं।
यहां बनी मूर्तियां साँची व भरहुत से उत्कृष्ट व लयात्मक मूर्तियां है।
अमरावती स्तुप में भरहुत व साँची की तरह बुद्ध की जातक कथाओं को उकेरा गया है। तथा पहले इसी स्थान पर प्रतीक चिन्हों को उकेरा गया था।
अमरावती स्तुप पर बनी प्रमुख जातक कथाएं -
चापे जातक कथा
हंस जातक कथा
विधुर पंडित जातक कथा
अमरावती स्तुप में बने बुद्ध से सम्बंधित दृश्यों में सुजाता की खीर व अंगुली माल प्रकरण मुख्य तौर से दर्शाए गए हैं।
इस स्तुप पर जो वेदिकाए बनी हुई है वो साँची स्तुप के समान की है और इन वेदिकाओं के ऊपर व निचे आधा आधा कमल अंकित किया गया है। तथा इन वेदिकाओं को प्रस्तर के डंडों से जोड़ा गया है।
अमरावती की शैली ही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। यहां शिल्पकार ने जो दर्शय अंकित किये ह उसमे पूर्णत भक्ति भाव दर्शाने में सफल हुआ है।
भरहुत व साँची के समान ही अमरावती में अंकन किया गया है। पर सूक्ष्म चित्रांकन की वजह से सजीव हुए हैं।
इस स्तुप पर शरीर के अंग प्रत्यंगों का अधिक ध्यान रखा गया है तथा अमरावती मे स्त्रियों की आकृतियां त्रिमुद्रा में बनाई गई है।
Note - अमरावती में बुद्ध की मानव रूप में प्रतिमा का अंकन शुरू हो गया था।
- अमरावती में पुरुषों की आकृतियों को पेचदार पगड़ी पहने हुए दर्शाया गया है, जिसके दोनो सिरे लटके हुए हैं।
यहां पर बुद्ध के जीवन से सम्बंधित अनेकों उदासीन आकृतियां उकेरी गई है।
आनंदकुमार स्वमि के अनुसार यह मूर्तियां मथुरा की मूर्तियों की अपेक्षा सिंहल की (श्री लंका) मूर्तियों से ज्यादा समानता रखती हैं।
Q. कौनसे इतिहासकार के अनुसार अमरावती में विदेशी प्रभाव दिखाई नहीं देता।
- आनंदकुमार स्वामी
- रायकृष्णदास
- कनिघम
- कोई नहीं
Q. कौनसे इतिहासकार के अनुसार अमरावती पर ग्रीक व यूनानी प्रभाव है।
- हेरीघम
- कनिघम
- रायकृष्णदास
- ग्रिफिथ महोदय
अमरावती स्तुप पर बनाई गई प्रमुख आकृतियां -
गौतम बुद्ध के जन्म उत्सव का दर्शय
सिद्धार्थ द्वारा अड़ियल घोड़े को वस में करना
नागों की पुजा
गौतम बुद्ध की बड़ी - बड़ी आदमकद मूर्तियां
चक्रपुजा / चक्र पाणी का दर्शय
Note - साँची व भरहुत के शिल्पकारी प्रकृति प्रेमी थे, इन्होंने पेड़ और फूल पत्तियों का सर्वाधिक अंकन किया।
- अमरावती में शिल्पकारों में सर्वाधिक मानव आकृतियों का अंकन हुआ है।
इसी परम्परा का अनुसरण करते हुए मथुरा व गांधार में मानवरूपी बुद्ध मूर्तियों का निर्माण हुआ।